स्वतंत्रता के बिना मनुष्य उसी प्रकार है जैसे बिना पहिये की रेलगाड़ी। यदि हम मनुष्य को एक विवेकशील प्राणी मानते हैं तब यह अति आवश्यक हो जाता है कि उसकी स्वतंत्रता का हनन न हो। बात यदि उस शासन की, जो लोगों का लोगों के लिए लोगों के द्वारा प्रशासन की बात करता हो तब स्वतंत्रता ही शायद सब कुछ हो जाती है। यद्यपि किसी की स्वतंत्रता वहीं तक है जहाँ तक दूसरे की स्वतंत्रता का हनन ना हो परन्तु लोकतंत्र की इसके बिना हम कामना भी नहीं कर सकते। वर्तमान में सरकार के आधार कार्ड के प्रति प्रेम को देखते हुए मनुष्य की स्वतंत्रता और निजता के ऊपर सवालिया निशान लग गया है। यदि हम बिश्व के अन्य देशों जैसे कि इंग्लैंड की बात करें तो वहां निजता एक प्रावधान के रूप में सरकार ने उपलब्ध करवायी और उसके साथ ही जनता को यह विश्वास दिलाया कि उनकी निजता के साथ कोई भी खिलवाड़ नही होगा।यदि हम भारत की बात करें तो सविंधान के मौलिक अधिकार अमेरिका से लिए गये हैं अतः उस समय वहां के सविंधान में निजता प्रत्यक्ष रूप से सविंधान में शामिल नहीं थी परंतु अप्रत्यक्ष रूप से जरूर शामिल थी।अतः भारती
विश्व के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश के आज रास्ट्रपति का चुनाव संपन्न हुआ लेकिन इसने बहुत सारे प्रश्न छोड दिये हैं। जिस प्रकार से हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों ने इसमें हिस्सा लिया और जिस प्रकार से देश के अंदर अल्पसंख्यक और दलित के ऊपर लगातार हमले हुए उसने कहीं न कहीं एक राष्ट्रपति के चुनाव को प्रमुखता के शिखर पर लाकर खड़ा कर दिया था। यही कारण था कि सत्ता पक्ष को मजबूरन एक दलित उम्मीदवार लाना पड़ा। सवाल यहाँ यह उत्पन्न होता है कि क्या जति देश के सबसे बड़े पद से भी ज्यादा ऊँची हो गई? 😢 बड़ी विडंबना है कि आज जब देश नई ऊंचाई प्राप्त कर आगे बढ रहा है उसी के साथ साथ देश के अंदर जाति तथा साम्प्रदायिक तनाव की समस्या बढ़ती जा रही है। इतनी विविधता के साथ जब देश प्रगति के पथ पर अग्रसर है तब कुछ सरारती तत्व आग को भड़का रहे है। यह केवल कुछ लोग या एक पार्टी की बात नही है कि वह सत्ता में है इसलिए ये सब मुद्दे आज बढ़ गए हैं। ये सारी समस्याएं पहले भी थी परन्तु इतनी जटिल नही थीं। फिर आज क्यों यह इतनी जटिल हो गई? इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे सरकार का नरम रुख आदि इत्यादि...। यह हमारे देश की संस